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हरिधाम आश्रम का संक्षिप्त परिचय

ब्रह्मलीन परमपूज्य श्री स्वामी एकरसानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा संस्थापित, देश -विदेश में ख्याति प्राप्त ”श्री दैवी सम्पद् महामण्डल“के प्रमुख आश्रम (जिनकी अनुक्रमणिका) नीचे दी गयी है, में से एक प्रमुख आश्रम ”हरिधाम आश्रम“ जो कि देश की सुविख्यात  औद्योगिक नगरी कानपुर सेन्ट्रल स्टेशन से  लगभग 25 किलो मीटर दूर आदि कवि भगवान वाल्मीकि जी की एवं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी की साधना  स्थली एवं  प्राकट्य़ भूमि ब्रह्मावर्त (बिठूर) कानपुर महानगर (उत्तर प्रदेश) में पतित पावनी भागीरथी (गंगाजी ) के सुरम्य तट पर स्थित हैं।

 आश्रम की स्थापना ब्रह्मलीन पूज्यपाद श्री स्वामी प्रकाशानन्द  सरस्वती जी महाराज द्वारा सन 1962 में की गयी थी, इसके  पश्चात  पूज्यपाद स्वामी श्री श्याम स्वरूपानन्द सरस्वती जी  महाराज  की  अध्यक्षता में  इस आश्रम का वर्ष 1988 से 2015 तक संचालन किया गया। इस समय में इस आश्रम का  सव॔तोमुखी विकास हुआ तथा इसकी ख्याति  अनिर्वचनीय रूप  से हुई । वर्तमान में यह आश्रम पूज्यपाद  महामण्डलेश्वर  श्री  स्वामी  असंगानन्द  सरस्वती श्री महाराज, (साहित्य वेदान्ताचाय॔ एम0 ए0) के संरक्षण में आश्रमके ट्रस्ट द्वारा  सुचाररूप से संचालन हो रहा हैं। 

आश्रम के मुख्य द्वार के ऊपर (बाहर) विघ्न विनाशक गणपति जी के दर्शन होते हैं तथा मुख्य द्वार के भीतर ऊपर एक झॉकी जिसमें सारथी के रूप में भगवान श्रीकृष्ण अपने परम भक्त अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुये दिखाये गये हैं, स्थित है। आश्रम के अंदर प्रवेश करते ही प्राणी को असीम शान्ति का अनुभव होता है मुख्य द्वार के अंदर प्रवेश करते ही दाहिनी ओर श्री स्वामी प्रकाशानन्द जी महाराज तथा श्री श्याम स्वरूपानन्द जी महाराज की समाधि मन्दिर स्थित है।   समाधि मन्दिर के चारों ओर सुन्दर सुगंधित पौधे लगे हुये हैं,जो मंन्दिर के वातावरण को चारो ओर से  महकाते रहते हैं, वायीं ओर शिवलोक के दर्शन होते  हैं, इसमे कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर जी की जटाऔं से पृथ्वी पर अवतरित होती  भागीरथी का मनोहारी दृश्य है ।                                                                

            थोड़ा आगे बढने पर बायीं ओर अन्नपूर्णा भवन है इसमें प्रति दिन संतो तथा भक्तों के लिये भोजन (प्रसादी) की उचित व्यवस्था है थोड़ा और आगे वढ़ने पर दाहिनी ओर सुन्दर एवं आकर्षक सत्संग भवन है। इसमे प्रातः 5 वजे से रात्रि 9 वजे तक प्रति दिन कार्यक्रम चलते रहते हैं, जब कि बायीं ओर आश्रम का कार्यालय तथा पुस्तकालय है। इस पुस्तकालय में उच्च कोटि का आध्यात्मिक साहित्य उपलब्ध है। सत्संग भवन के ठीक सामने ”श्रीराधा माधव “ का बहुदर्शी शीशे से सुसज्जित भव्य मन्दिर है जिसमें भगवान की छवि के एक साथ अनेकों दर्शन होते हैं तथा बायीं ओर एक देव पीठ है यहॉॅं श्री राम जानकी का मन्दिर तथा अनेकों देवी देवताओ की प्रतिमायें प्रतिष्ठित हैं। मुख्य मन्दिर के परिकृमा मार्ग में भगवान वैकटेश का मन्दिर है तथा इसी मार्ग में मॉ भागीरथी के दर्शन होते है।

           सत्संग भवन तथा गंगा जी के तट के मध्य गंगा द्वार है जिस पर समाधिस्थ भगवान शंकर की मनोहरी प्रतिमा स्थित है। गंगाद्वार के निकट दाहिनी ओर मनोहारी यज्ञशाला है जिसमे प्रत्येक पूर्णिमा को साधको द्वारा हवन किया जाता है तथा विशेष अवसरो पर भी यज्ञ का आयोजन किया जाता है।

         आश्रम के पृष्ठ भाग में मॉ भागीरथी के तट पर भूतभावन भगवान आशुतोष, (रामेश्वरम्) सपरिवार निवास करते है। कभी-2 वर्षाकाल में मॉ भागीरथी अपनी अथाह जलराशी के साथ ”श्री रामेश्वर मंन्दिर में प्रवेश करके स्वयं भोले बाबा का अभिषेक करती है।

         इस आश्रम में साधको को साधना करने के लिये लगभग 100 कुटिया (कमरे ) बने हुये है जो सभी प्रकार से व्यावास्थित है। जिससे साधको को किसी प्रकार का कष्ट ना हो।

     आश्रम के रचनात्मक कार्य

1) गोसदन (गौशाला ) इसमें गो सेवा का समुचित प्रबंध है।

2) धर्मार्थ चिकित्सालय-यहॉ पर एलोपैथिक तथा होम्योपैथिक पद्धति द्वारा चिकित्सा की अलग-अलग व्यवस्था है।

3) अन्न सेवा - स्थायी कोष का धन ट्रस्ट के बैंक खातों में जमा रहता है, जिसके व्याज से अन्न सेवा, गौशाला तथा चिकित्सालय चलते हैं। इसमे भक्तगण सन्त महात्माओं के लिये भोजन, जलपान, चिकित्सा आदि का समुचित प्रवंन्ध है

4) पुस्तकालय - साधकों के हितार्थ आध्यात्मिक पुस्तकों का अनूठा संग्रह है। यहॉ पर श्री दैवी सम्पद् महामण्डल के सन्त महात्माओ द्वारा रचित सम्पूर्णा साहित्य उपलब्ध है। शोध करने वाले छात्र भी यहॉ आकर उपलब्ध साहित्य से लाभ उठाते है।

 (5) आश्रम में प्रतिदिन पक्षी सेवा की जाती हैं जिसमें पक्षियो के लिये दाना डाला जाता हैं तथा जल सेवा भी रहती हैं।

 आश्रम के विशेष उत्सव

1) आदि जगतगुरू शंकराचार्य की जयन्ती प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल पंचमी कों मनायी जाती है।

2) ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष गंगादशहरा का पावन पर्व मनाया जाता है।

3) आषाढ पूर्णिमा को प्रतिवर्ष गुरू पूर्णिमा (व्यासपूजा) महोत्सव मनायाजाता है।

4) श्रावण शुक्ल सप्तमी को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी की जयन्ती मनायी जाती है।

5) कार्तिक शुक्ल अष्टमी को सर्वप्रथम कन्हैया गौचराने के लिये गये थे अतः इस दिन गोपाष्टमी का पावन पर्व मनाया जाता है।

6) ब्रहमलीन सदगुरू श्री स्वामी प्रकाशानन्द सरस्वती जी महाराज तथा ब्रह्मलीन सदगुरू श्री स्वामी श्याम स्वारूपानन्द जी महाराज का निर्वाण महोत्सव मार्गशर्ष कृष्ण पक्ष त्रयोदषी से मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तक महामंडलेष्वर श्री स्वमी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज की अध्यक्षता मे महान संन्त सम्मेलन आयोजित होता है जिसमे, देश के संत एवं भक्तगण पधारते है।

श्रीदेैवी सम्पद् महामण्डल के प्रमुख आश्रम

1) परमार्थ निकेतन, स्वर्गाश्रम, ऋषीकेश  (उत्तरा खण्ड)

2) हरिधाम आश्रम, ब्रह्मावर्त (बिठूर) कानपुर महानगर (उत्तर प्रदेश)

3) एकरसानन्द आश्रम, मैनपुरी (उत्तर प्रदेश  )

4) मुमुक्ष आश्रम, शाहजहॉपुर (उत्तर प्रदेश)

5) परमार्थ आश्रम, सप्तसरोवर, हरिद्वार (उत्तरा खंण्ड)

6) आनन्द आश्रम, बरेली (उत्तर प्रदेश) 

7) दैवी सम्पद् मंडल आश्रम, रायबरेली (उत्तर प्रदेश)

8) परमार्थ लोक, वद्रीनाथ, जिला - चमोली   (उत्तरा खंण्ड)

9) परमार्थ ज्ञान मंदिर, कनखल, हरिद्वार (उत्तरा खंण्ड)

10) गोपाल आश्रम, फिरोजावाद, (उत्तर प्रदेश)

11) श्रीकृष्णा आश्रम,बृजघाट -  गढमुक्तेस्वर, पंचशीलनगर, हापुड़    (उत्तर प्रदेश)

12) परमार्थ निकुन्ज, वृन्दावन (उत्तर प्रदेश)

13) परमार्थ मंदिर, सफतरजंग एन्क्लेव, नई  दिल्ली  

14) एकाक्षरानंद आश्रम, बिरा री, जिला इटावा  (उत्तर प्रदेश)

बिठूर का इतिहास

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श्री देैवी सम्पद् महामण्डल के संस्थापक एवं प्रमुख संत 

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